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यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है? सबसे पहले इसका जिक्र कब हुआ था? (सोर्स—सोशल मीडिया) |
नई दिल्ली: 28 जनवरी को उत्तराखंड में 'यूनिफॉर्म सिविल कोड' (Uniform Civil Code - UCC) को लागू कर दिया गया है। इस प्रकार उत्तराखंड पहला राज्य बन गया है जहां देश में सबसे पहले UCC को लागू किया गया है। 'यूनिफॉर्म सिविल कोड' को हम 'समान नागरिक संहिता' भी कहते हैं। इसके लागू होने से पूरे भारतवर्ष में हर धर्म, जाति और समुदायों के लिए कानून का एक प्रावधान होगा, यानी सभी के लिए एक कानून और एक न्याय होगा।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1835 में ब्रिटिश शासक के द्वारा एक रिपोर्ट में (Uniform Civil Code) के बारे में जिक्र किया गया था और कहा गया था कि सभी धर्म, जाति, समुदाय और वर्गों के अपराधों के मध्यनजर एक समान कानून होना चाहिए।
हालांकि, रिपोर्ट में यह साफ-साफ कह दिया गया था कि यदि ऐसा कोई कानून लागू किया भी जाता है तो चाहे वो हिन्दू हो या मुस्लिम या सिख एवं पारसी, किसी भी धर्म के निजी कानून में बदलाव नहीं किया जाएगा।
UCC का जिक्र सबसे पहले कब हुआ था?
दरअसल, गोवा में 'गोवा सिविल कोड' लागू है। वर्ष 1869 में गोवा पुर्तगाल के कब्जे में था, तब पुर्तगाल ने 1867 में इस कानून को बनाया था और 1869 से इसे लागू कर दिया था। दिसंबर 1961 में गोवा पुर्तगाल से आजाद हुआ और भारत का हिस्सा बना। भारत का हिस्सा बनने के बाद कई नियमों में बदलाव किया गया था।
लेकिन गोवा सिविल कोड को गोवा, दमन एंड दिउ एडमिनिशट्रेशन एक्ट, 1962 के 5(1) में जगह दे दी गई थी। जिससे यह कहा जा सकता है कि 1962 से UCC सबसे पहले भारत के गोवा राज्य में लागू किया जा चूका है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code - UCC) क्या है?
'यूनिफॉर्म सिविल कोड' एक 'समान नागरिक संहिता' कानून है, जो सभी धर्म, जाति और समुदाय के लोगों पर समान रूप से लागू होता है, जिसका मुख्य उद्देश्य विवाह, संपत्ति और उत्तराधिकार इत्यादि मामलों पर नागरिकों के बीच समानता लाना है, जिससे लोगों के बीच किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो।
भारत में UCC का महत्व क्या है?
वर्तमान में भारतवर्ष में सभी धर्मों के लिए अलग-अलग कानून लागू है। एकमात्र राज्य उत्तराखंड है जहां 28 जनवरी 2025 को 'UCC' लागू किया गया है। अगर इसे भारत के सभी राज्यों में प्रयुक्त किया जाता है तो धार्मिक आधार पर हो रहें भेदभाव पूरी तरह खत्म हो जाएगा। अभी.....
- हिन्दु धर्म में विवाह-संस्कार, संपत्ति, उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे मामलों के लिए हिन्दु पर्सनल लॉ बनाया गया है। इसमें जैन, सिख और बौद्ध धर्म भी शामिल हैं।
- इस्लाम शरीयत के लिए निकाह, तलाक, और विरासत को लेकर एक मुस्लिम पर्सनल लॉ बनाया गया है।
- ईसाई और पारसी धर्म के लिए भी पर्सनल कानून बनाया गया है।
'भारतीय संविधान' में UCC का जिक्र किस प्रकार है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता को लेकर एक प्रावधान है, जिसमें यह जिक्र किया गया है कि UCC को लागू करने के लिए राज्य पूरी तरह स्वतंत्र है। लेकिन यह एक 'निदेशक सिद्धांत' है। यह राज्यों पर निर्भर करता है कि उन्हें इसे लागू करने का प्रयास करना चाहिए या नहीं।
अनुच्छेद 44 - भारतीय संविधान के भाग 4 (निदेशक सिद्धांत) का एक महत्वपूर्ण अनुच्छेद है। जिसमें यह कहा गया है कि राज्य को भारत में एक 'समान नागरिक कानून' लागू करना चाहिए, जिससे देश में सभी नागरिकों के लिए विवाह, संपत्ति, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने से संबंधित कानून समान रहें।
हालांकि, इसे लागू करने के लिए व्यापक सहमति और संवेदनशीलता की जरूरत होगी क्योंकि इससे किसी समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है।
अनुच्छेद 44 का मुख्य उद्देश्य
- सभी धर्म, जाति और समुदाय के लिए एक कानूनी समानता स्थापित करना है।
- महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार देना है।
- पर्सनल लॉ के कारण होने वाले भेदभाव को खत्म करके राष्ट्रीय एकता और एकरूपता सुनिश्चित करना है।
UCC लागू होने के फायदे और नुकशान...
- देश के सभी नागरिकों के लिए समान कानून होगा, जिससे भेदभाव खत्म होगा अथवा समानता और न्याय मिलेगा।
- UCC के लागू होने से महिलाओं के अधिकारों में कमी होगी, ऐसा कई पर्सनल लॉ का दावा है।
- समान कानून होने से राष्ट्र और समाज की एकता मजबूत होगी। जबकि कुछ समुदायों को लगता है कि इसमें समाजिक अस्थिरिता आएगी।
- कुछ समुदायों को लगता है कि इससे उनके धार्मिक परंपराओं में दखल होगा।
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