पटना यूनिवर्सिटी कैसे हुआ राजनीतिक दुर्घटना का शिकार; 29 मार्च को होगा "PU छात्र संघ" चुनाव

पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव
पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव 2025 (सोर्स सोशल मीडिया)

पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव: 1912 में बिहार और बंगाल के विभाजन के बाद राज्य में एक यूनिवर्सिटी को स्थापित करने की चर्चा शुरु हुई। पटना यूनिवर्सिटी Act-1917 के तहत 5 वर्ष बाद अक्टूबर 1917 में गंगा नदी के किनारे एक यूनिवर्सिटी को स्थापित किया गया। जिसको बाद में पटना यूनिवर्सिटी का नाम दिया गया। सिर्फ 25 वर्ष के अंदर यूनिवर्सिटी ने शिक्षा की स्तर और कैंपस की कामयाबी को नई ऊंचाई तक पहुंचाया था। जिसके बाद यूनिवर्सिटी के इस कीर्तिमान की चर्चा पूरी दुनिया में होने लगी थी।

जिस यूनिवर्सिटी में शिक्षा अध्ययन कर हजारों छात्र-छात्रा पदाधिकारी बनें, जहां एक प्रोफेसर ने आइंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती दी, सैकड़ों नेता राजनीति में नई शिखर तक पहुंचे, हजारों युवा इंजीनियर और डॉक्टर बनें, आज उस यूनिवर्सिटी का कैंपस नफरत, झूठ, हिंसा, और आतंक का केंद्र बन गया है।


यूनिवर्सिटी कैंपस हॉस्टल में बम-बारूद

पटना यूनिवर्सिटी में 29 मार्च को छात्र संघ का चुनाव होना है। चुनाव से पहले यूनिवर्सिटी कैंपस का हॉस्टल पढ़ाई की बजाय लाठी, बम, और बारूद से थर्रा रहा है। यह स्थिति तब है जब इसी यूनिवर्सिटी से पढ़े कर निकले दिग्गज नेता लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की सरकार ने पिछले 35 सालों से बिहार के शासन में है।

पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव
पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव 2025 (सोर्स - सोशल मीडिया)

NIRF की रैंकिंग में पटना यूनिवर्सिटी को 50 से 100 के बीच की श्रेणी में रखा गया है। वहीं, पटना विश्वविधालय को राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC) द्वारा बी+ ग्रेड उपलब्ध हुआ है। अभी यूनिवर्सिटी में लगभग 20 हजार छात्र-छात्रा विभिन्न पाठ्यक्रम में दाखिला लिए हुए है।


यूनिवर्सिटी कैसे हुआ बर्बाद?

  • पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों में से एक वशिष्ठ नारायण सिंह ने आइंस्टीन के सिद्धांत (Theory of Relativity) को चुनौती दिया था।

  • डॉक्टर केसी सिन्हा की गणित की किताब आज देश में मौजूद प्रसिद्ध किताबों में से एक है।

  • एचसी वर्मा की भौतिकी और रसायन शास्त्र की किताब 'Concept of Physics and Concept of Chemistry' आज इंजीनियरिंग और मेडिकल की तैयारी के लिए काफी फेमस बुक है।   

  • लेकिन, पटना यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति (VC) रास बिहारी प्रसाद ने कहा, 1966 के बाद यूनिवर्सिटी की बर्बादी शुरू हो गई थी।

यूनिवर्सिटी में आज तक कोई रिसर्च नहीं हुआ है। ग्लोबल जर्नल में शिक्षकों और छात्रों का बहुत कम रिसर्च पेपर छपे है। कुछ वोकेशनल कोर्स को छोड़कर अन्य किसी भी कोर्स में प्लेसमेंट नहीं है। यूनिवर्सिटी में पुरानी बिल्डिंग कैंपस की इन्वॉयरमेंट सही नहीं है। प्रोफेसरों और शिक्षकों की नियुक्ति यूनिवर्सिटी का कमीशन करती हैं।


पटना यूनिवर्सिटी क्यों हुआ बर्बाद?

वर्ष 1966 से पटना यूनिवर्सिटी का अस्तित्व खत्म होना शुरू हुआ। अलग-अलग विषयों को लेकर छात्र आंदोलन करने लगे, कैंपस के भीतर नफरत, हिंसा, और गोलीबारी जैसी गतिविधियां शुरू हो गई। पूर्व कांग्रेस नेता महामाया प्रसाद ने गांधी मैदान में सभा के दौरान छात्रों को जिगर का टुकड़ा कहा, जिसके बाद छात्रों में पागलपन पैदा हो गया, और यूनिवर्सिटी बर्बादी की ओर बढ़ गया।

पटना यूनिवर्सिटी के छात्रों का हिम्मत नहीं था कि वह पॉलिटिकल गतिविधियों में भाग ले और यूनिवर्सिटी के ऑफिस में प्रवेश कर सके। इसकी आवश्यकता नहीं होती थी क्योंकि सही समय पर परीक्षा और रिजल्ट दोनों हो जाता था। 1969 में पहली बार पटना यूनिवर्सिटी में डायरेक्ट चुनाव कराने की घोषणा की गई, जिससे यूनिवर्सिटी में जाती की एंट्री हुई।

मामला जाती तक ही सीमित नहीं रहा, वाइस चांसलर केके दत्त की शासनकाल में सीनेट, सिंडिकेट में बड़े पैमाने पर जाति आधारित नियुक्तियां हुई। यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन कायस्थ और भूमिहार दो गुट में बट गया। कायस्थ को प्राथमिकता मिलने लगा, पूरे यूनिवर्सिटी में जाती का प्रभाव पैदा होने लगा और इस प्रकार यूनिवर्सिटी काफी प्रभावित हुआ।


बिहार आंदोलन के बाद कैसे धांधली हुआ तेज?

जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में वर्ष 1974 में छात्रों के द्वारा बिहार सरकार के कुशासन और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक राजनीतिक आंदोलन को शुरू किया गया था। इस आंदोलन से पहले यूनिवर्सिटी में अनुचित परीक्षा या कोई अन्य गतिविधियां होती हैं इसके बारे में कोई सोच नहीं सकता था। लेकिन जेपी आंदोलन ने बिहार में छात्र आंदोलन का स्वरूप बदल दिया।

जयप्रकाश नारायण के आह्वान (मांग) पर छात्र यूनिवर्सिटी का बहिष्कार करने लगे। छात्रों को लगता था की राजनीति में अच्छा करने के लिए छात्र राजनीति एक महत्वपूर्ण और बड़ा मंच है। छात्र किताब खोलकर परीक्षा देनें लगे, चोरी, दंगा, भूख हड़ताल और परीक्षा की तिथि को आगे बढ़ाने, इत्यादि जैसी गतिविधियों को लेकर छात्रों ने आंदोलन करना शुरू कर दिया। और फिर इसी आंदोलन ने यूनिवर्सिटी को बर्बादी के राह तक पहुंचा दिया।


सरकारी हस्तक्षेप के बाद क्या हुआ?

पटना यूनिवर्सिटी में 1974 से पहले किसी भी पॉलिटिकल गतिविधियां या पैरवी को प्राथमिकता के साथ शामिल नहीं किया जाता था। पूर्व VC रास बिहार प्रसाद बताते हैं कि 70 के दशक के बाद आए किसी भी कुलपति की मर्यादा बढ़ी नहीं है, कोई भी कुलपति ऐसे नहीं थे जिनका कोई लक्ष्य हो।

बिहार की राजनीति यूनिवर्सिटी में प्रवेश करता गया। आदर्श कुलपतियों का सिद्धांत दुर्घटना का शिकार होने लगा। कैंपस, परीक्षा, परिणाम, नियुक्ति, एडमिनिस्ट्रेशन पुरा क्षेत्र पॉलिटिक्स से ढक गया। इस प्रकार स्तिथि इतनी खराब हो गई, जो आज तक संभल नहीं पाई है।


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